Internet क्या होता है और कैसे काम करता है?

Internet Kya Hota Hai

Internet Kya Hota Hai :- वर्तमान समय में सूचना तकनीकों का प्रचार एवं प्रसार विश्व के लगभग प्रत्येक कोने में हो चुका है। कम्प्यूटर और सूचना तकनीक मिलकर ऐसा कम्प्यूटर नेटवर्क बनाते हैं।

जिससे सचनाओं को एक स्थान से दूसरे स्थान तक अधिक प्रभावशाली ढंग से स्थानान्तरित किया जा सके ध्वनि, सूचनाएँ आँकड़े वीडियो आदि को इण्टरनेट द्वारा सरलतापूर्वक स्थानान्तरित किया जा सकता है।

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Internet Kya Hota Hai

Internet Kya Hota Hai

विभिन्न प्रकार के अनेक नेटवर्कों का ऐसा समूह, जिसमें सभी नेटवर्क किसी-न-किसी प्रकार से और किसी न किसी संचार माध्यम से आपस में जुड़े रहते हैं।

एक नेटवर्क पर उपस्थित कम्प्यूटर दूसरे किसी नेटवर्क के कम्प्यूटर से सम्पर्क स्थापित कर सकता है और डेटा का आदान-प्रदान कर सकता है, इण्टरनेट कहलाता है।

इसे हम इस प्रकार भी कह सकते हैं कि इंटरनेट लाखों करोड़ों कम्प्यूटरों का एक ऐसा विशाल समूह है, जिसके सभी कम्प्यूटर आपस में जुड़कर ‘कम्प्यूटर नेटवर्क का निर्माण करते है।

इस नेटवर्क के सभी कम्प्यूटर आपस में सम्पर्क स्थापित कर सकते हैं और डेटा का आदान-प्रदान भी कर सकते हैं।

इण्टरनेट हजारों लाखों अलग-अलग कम्प्यूटर नेटवकों को मिलाकर बना एक विश्वव्यापी नेटवर्क है। इसे ‘सूचना राजपथ’ भी कहते हैं।

इसमें प्रत्येक कम्प्यूटर नेटवर्क किसी दूसरे कम्प्यूटर नेटवर्क से एक ऐसे माध्यम के द्वारा जुड़ा होता है, जिससे सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जा सकता है।

इण्टरनेट विश्व के विभिन्न नेटवर्कों को जोड़कर बनाया गया एक नेटवर्क है। इसकी सहायता से विश्व के किसी भी भाग में सरलता से सम्पर्क स्थापित किया जा सकता है।

यह टेलीफोन लाइनों या अन्य माध्यमों की सहायता से विभिन्न देशों के कम्प्यूटरों को जोड़कर बनाया गया एक ऐसा विश्वव्यापी नेटवर्क है, जिसमें विभिन्न कम्प्यूटर आपस में जुड़े होते हैं।

इण्टरनेट के अन्तर्गत एक कम्प्यूटर किसी अन्य कम्प्यूटर से सूचनाओं को आवश्यकतानुसार प्राप्त कर सकता है ।

इण्टरनेट किसी एक नेटवर्क अथवा व्यक्तिगत कम्प्यूटर को किसी भी अन्य नेटवर्क अथवा व्यक्तिगत कम्प्यूटर से सूचनाओं के आदान-प्रदान की सुविधा प्रदान करता है।

इसके माध्यम से हम आँकड़ों अथवा फाइलों का हस्तान्तरण कर सकते हैं। ऐसा करने के लिए इण्टरनेट से जुड़े प्रत्येक कम्प्यूटर में एक निश्चित प्रोटोकॉल का प्रयोग करना आवश्यक होता है।

प्रोटोकॉल से अभिप्रायः ऐसे नियमों से होता है जो विभिन्न प्रकार की मशीनों तथा प्रयोगकर्त्ताओं को परस्पर जोड़ते हैं, जिससे ये आँकड़ों और सूचनाओं को हस्तान्तरित कर सकें।

इण्टरनेट से विश्व के करोड़ों लोग लाभ उठा रहे हैं। भारत में भी इसकी लोकप्रियता बढ़ती ही जा रही है। इसमें मुख्यतः ई-मेल, वर्ल्ड वाइड वेव, फाइल ट्रांसफर प्रोटोकॉल, ई-कामर्स आदि सुविधाएँ उपलब्ध हैं।

विश्व के किसी कम्प्यूटर अथवा किसी वेबसाइट से सम्पर्क करना टेलीफोन नम्बर डायल करने जितना ही आसान है।

इण्टरनेट पर किसी व्यक्ति, संस्था, कम्पनी और देश का कोई अधिकार नहीं है। अत: यदि इण्टरनेट के कारण कोई हानि हो तो किसी से शिकायत नहीं की जा सकती ।

इण्टरनेट से जुड़े प्रत्येक कम्प्यूटर को कुछ बुनियादी नियमों अथवा प्रोटोकॉल नियमों का पालन करना पड़ता है।

आज लाखों-करोड़ों कम्प्यूटर इण्टरनेट से जुड़े होते हैं। इण्टरनेट का सबसे बड़ा लाभ यह है। कि इससे किसी भी समय और किसी भी विषय पर सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

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Internet का विकास

इण्टरनेट का विकास विभिन्न अकादमिक संस्थानों, सरकारी एवं सूचना प्रौद्योगिकी कम्पनियों के सम्मिलित प्रयास के फलस्वरूप हुआ। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर लियोनोर्ड क्लीनरॉक को इण्टरनेट का जनक कहा जाता है।

डॉक्टर क्लोनरॉक एवं उनके साथियों ने 2 सितम्बर, 1969 को सर्वप्रथम दो कम्प्यूटरों के मध्य संवाद स्थापित करने में सफलता प्राप्त की थी। यह संवाद एक रूटर के माध्यम से बना था, जिसे इण्टरफेस मैसेज प्रॉसेसर कहा गया।

वस्तुतः आवश्यकता हो आविष्कार की जननी है। सन् 1969 में अमेरिकी रक्षा विभाग ने आपात स्थिति में जबकि सम्पर्क के अन्य माध्यम फेल हो चुके थे; विभिन्न एजेंन्सियों तथा सेना के विभिन्न अंगों के मध्य सामंजस्य स्थापित करने के लिए इण्टरनेट की स्थापना की।

आरम्भ में जो नेटवर्क बना उसे ARPANET कहा जाता था। 1980 के दशक के अन्तिम वर्षों में नेशनल साइंस फाउण्डेशन के NSFNET का नामकरण NREN कर दिया गया तथा इसके क्षेत्र का विस्तार कर इसके व्यावसायिक प्रयोग की अनुमति प्रदान की गई ।

इण्टरनेट पर सबसे अधिक प्रसिद्ध ‘वर्ल्ड वाइड वेब’ नेटवर्क है। इसका निर्माण सन् 1989 में जेनेवा की यूरोपियन पार्टिकल फिजिक्स लैब ने किया था।

यह इण्टरनेट पर प्रयोग के लिए सन् 1991 में उपलब्ध हो गया। सन् 1993 में आए मोजाइक सॉफ्टवेयर के द्वारा इण्टरनेट पर किसी चीज को पत्रिका रूप में प्रस्तुत किया जा सकता था। इस सॉफ्टवेयर से Text और Graphics इण्टरनेट पर उपलब्ध हो गए।

सन् 1994 में नेटस्केप कम्युनिकेशन और सन् 1995 में माइक्रोसॉफ्ट कार्पोरेशन के ब्राउज़र प्रोग्राम में आने से प्रयोगकर्ताओं के लिए इण्टरनेट का प्रयोग बहुत सरल हो गया। आज विश्व का प्रत्येक कोना दूसरे कोने से इण्टरनेट के माध्यम से जुड़ा हुआ।

आज किसी भी प्रकार की उपभोक्ता वस्तुओं के क्रय-विक्रय से सम्बन्धित, बैंक से प्रत्यक्ष सम्पर्क, विशेषज्ञों के लिए सरकारी सूचनाओं की उपलब्धता आदि जानकारियाँ इण्टरनेट पर सुलभ हैं।

सःसन्देह यह कहा जा सकता है कि इण्टरनेट मानव-सभ्यता के इतिहास में सबसे तीव्र गति से द्ध ओर अग्रसर होने वाला संचार माध्यम है।

Internet के लाभ

इण्टरनेट से होने वाले प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं

  1. इण्टरनेट के माध्यम से ई-मेल भेजा और प्राप्त किया जा सकता है।
  2. इण्टरनेट की सहायता से हम गेम खेल सकते हैं।
  3. इण्टरनेट के माध्यम से इण्टरनेट से जुड़े किसी भी व्यक्ति से बात की जा सकती है।
  4. इण्टरनेट के माध्यम से वस्तुएँ क्रय की जा सकती हैं, विज्ञापन दिए जा सकते हैं और नौकरी के लिए आवेदन किया जा सकता है।
  5. इण्टरनेट के माध्यम से विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग लिया जा सकता है और अपनी वेबसाइट बनाई जा सकती है।
  6. इण्टरनेट के माध्यम से व्यापार किया जा सकता है
  7. इण्टरनेट रोजगार के नए आयामों को खोलता है; जैसे-साइबर कैफे अथवा इण्टरनेट कैफे । इस कैफे में चाय और कॉफी की सुविधा के साथ-साथ कम्प्यूटर की सुविधा भी उपलब्ध होती है। यहाँ उपलब्ध कम्प्यूटरों पर इण्टरनेट का प्रयोग करके किसी भी प्रकार की जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
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Internet के उपयोग

इण्टरनेट के उपयोग से निम्नलिखित सुविधाएँ प्राप्त की जा सकती हैं-

  1. इलेक्ट्रॉनिक मेल (E-mail)
  2. वर्ल्ड वाइड वेब (World Wide Web)
  3. File Transfer Protocol
  4. टेलनेट (Telnet)
  5. आर्ची (Archie)
  6. इलेक्ट्रॉनिक बुलेटिन बोर्ड संचार
  7. गोफर (Gopher)
  8. ई-कॉमर्स (E-commerce)

(1) इलेक्ट्रॉनिक मेल (E-mail)

ई-मेल से तात्पर्य इलेक्ट्रॉनिक डाक से है। ई-मेल, डॉक व्यवस्था से अधिक विश्वसनीय एवं तीव्र गति से डाक पहुँचाने वाली व्यवस्था है। यह इण्टरनेट की सबसे पुरानी एवं उपयोगी सेवा है।

इस सेवा का प्रयोग करके किसी भी प्रकार की सूचना एवं सन्देश को कम्प्यूटर के द्वारा दुनिया के किसी भी कोने में इण्टरनेट की सुविधा से युक्त कम्प्यूटर पर भेजा जा सकता है और कहीं से भी भेजी गई सूचना प्राप्त की जा सकती है।

सूचनाओं आदान प्रदान का यह सबसे सस्ता माध्यम है। इसके लिए जिस व्यक्ति को आप ई-मेल करना चाहते हों, उसका ई-मेल पता आपको मालूम होना चाहिए।

साधारण भाषा में कहा जाए तो ई-मेल एक ऐसी ऐप्लीकेशन है जो एक या अधिक कम्प्यूटरों के मध्य सामान्य डेटा संचरित करती है।

एक प्रयोगकर्ता अपने कम्प्यूटर से एक पत्र – टाइप करके उसे किसी अन्य व्यक्ति को भेज देता है और वह व्यक्ति उस ई-मेल को अपनी कम्प्यूटर स्क्रीन पर देख सकता है।

इण्टरनेट पर ऐसी अनेक वेबसाइट उपलब्ध हैं, जो निःशुल्क ई-मेल एड्रेस एवं ई-मेल सेवाएँ उपलब्ध कराती हैं। इनमें से निम्नलिखित प्रचलित हैं –

  1. www.hotmail.com
  2. www.yahoo.com
  3. www.rediffmail.com

(2) वर्ल्ड वाइड वेब (World Wide Web)

वर्ल्ड वाइड वेब को संक्षेप में www कहा जाता है। यह इण्टरनेट द्वारा प्रदान की जाने वाली सर्वाधिक लोकप्रिय एवं व्यावसायिक सेवा है ।

वर्ल्ड वाइड वेब का विकास सन् 1989 में स्विटजरलैण्ड की सर्न भौतिको लैब में किया गया था । आरम्भ में इसका प्रयोग वैज्ञानिकों द्वारा कम्प्यूटर नेटवर्क पर उपस्थित शोध सम्बन्धी जानकारियों और फाइलों को प्राप्त करने, पढ़ने और खोलने के लिए किया गया था।

आज यह इतनी अधिक लोकप्रिय हो गई है कि इसी को इण्टरनेट का पर्याय माना जाने लगा है। इस सेवा का प्रयोग करके अपने उत्पाद अथवा अपनी किसी विशेष सेवा को विश्व के सामने लाया जा सकता है। इसके लिए वेब पेज बनवाना होता है और कुछ शुल्क देकर इण्टरनेट पर पोस्टिंग करनी पड़ती है।

ऐसे स्थानों को जहाँ व्यक्ति या संस्था अपने से सम्बन्धित सूचना को स्थापित करता है, ‘वेब साइट’ कहते हैं। प्रत्येक वेब साइट को एक वेब एड्रेस दिया जाता है, जिसे URL (Uniform Resource Locator) कहते हैं । प्रत्येक URL निम्नलिखित प्रारूप के अनुसार होता है…

Home

http हाइपर टेक्स्ट-ट्रान्सफर प्रोटोकॉल का नाम है, www वेब सेवा है तथा शेष पता है। वर्ल्ड वाइड वेब में किसी भी सूचना को ढूँढ़ना बहुत कम समय लगाने वाला कार्य है। किसी ब्राउज़र प्रोग्राम द्वारा यह कार्य सरलता से किया जा सकता है।

(3) File Transfer Protocol

इस सेवा का प्रारम्भ करके अपनी फाइल को इण्टरनेट से जुड़े किसी भी कम्प्यूटर पर स्थानान्तरित किया जा सकता है।

(4) टेलनेट (Telnet)

टेलनेट को दूरवर्ती लॉग-इन अथवा रिमोट लॉग इन भी कहते “हैं। यह भी संचार की एक सुविधा है, जो आपको किसी दूसरे कम्प्यूटर सिस्टम तक पहुँचाकर उस पर उपलब्ध सेवाओं के प्रयोग का अवसर प्रदान करती है।

इस सेवा का प्रयोग करके विश्व के किसी भी पुस्तकालय से सम्पर्क स्थापित किया जा सकता है और अपने उपयोग की जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

टेलनेट ऐसे संस्थानों के लिए लाभकारी है जिनकी अनेक शाखाएँ देश-विदेश में फैली हैं। टेलनेट के द्वारा एक शाखा में बैठा कर्मचारी किसी दूसरे देश की शाखा में रखे कम्प्यूटर पर कार्य कर सकता है।

(5) आर्ची (Archie)

इण्टरनेट की यह एक ऐसी सुविधा है, जिसके माध्यम से सूचनाओं को ढूँढने का कार्य किया जा सकता है। वास्तव में आर्ची सर्वर का एक समूह है जो कि अनेक फाइलों तथा वेबसाइट्स को अपने में समेटे हुए है।

प्रयोगकर्त्ता द्वारा किसी फाइल की माँग पर सभी सर्वर परस्पर संचार के द्वारा फाइल खोजकर उसका पता उपलब्ध करा देते हैं।

(6) इलेक्ट्रॉनिक बुलेटिन बोर्ड संचार

जैसे ई-मेल किसी व्यक्ति विशेष को सन्देश भेजने की सुविधा प्रदान करती है, वैसे ही यह नेटवर्क समाचार सेवा आपको इलेक्ट्रॉनिक बुलेटिन बोर्ड का सदस्य बना देती है।

इसके द्वारा किसी समाचार या सूचना को सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराया जा सकता है।

(7) गोफर (Gopher)

यह भी इण्टरनेट पर प्रयोग की जाने वाली एक सुविधा है । गोर को मिनेसोटा विश्वविद्यालय, अमेरिका द्वारा विकसित किया गया था । यह अनेक है नाइब्रेरी एवं सर्वरों से सूचना उपलब्ध कराने का सरल माध्यम है।

आर्ची के द्वारा केवल यह पता चलता है कि सूचना कहाँ है, जबकि गोफर उस सूचना को तलाश करके उस सूचना को स्वयं उपलब्ध भी करा देता है।

(8) ई-कॉमर्स (E-commerce)

दूर-दूर बैठे व्यक्तियों अथवा कम्पनियों द्वारा इण्टरनेट माध्यम से सम्पर्क स्थापित करके वस्तुओं तथा सेवाओं का क्रय-विक्रय अथवा लेन-देन करना ही ई-कॉमर्स कहलाता है ।

इण्टरनेट का यह एक नवीन उपयोग है। इसके चार प्रकार हैं

  • व्यापार बनाम व्यापार (Business to Business)
  • व्यापार बनाम ग्राहक (Business to Customer)
  • ग्राहक बनाम व्यापार (Customer to Business)
  • ग्राहक बनाम ग्राहक (Customer to Customer)

Internet Access Kaise Kare

किसी भी डिवाइस से इंटरनेट को एक्सेस करने के लिए आपको हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर की आवश्यकता पड़ती है आप इंटरनेट को तभी एक्सेस कर सकते हैं।

जब आपके डिवाइस में मॉडम की सुविधा उपलब्ध होगी और आपके फोन में इंटरनेट का सिग्नल भी कनेक्ट होगा तब आप इंटरनेट को एक्सेस कर सकते हैं और उससे जुड़ी किसी भी प्रकार की जानकारी बहुत ही आसानी से प्राप्त कर सकते हैं।

इंटरनेट को एक्सेस करने के बहुत सारे तरीके होते हैं जिसमें से आप वाईफाई के माध्यम से इंटरनेट को एक्सेस कर सकते हैं और हॉटस्पॉट के माध्यम से भी इंटरनेट को एक्सेस कर सकते हैं

इण्टरनेट के लिए कम्प्यूटर में हार्डवेयर एवं सॉफ्टवेयर की आवश्यकता

इण्टरनेट के लिए कम्प्यूटर में हार्डवेयर एवं सॉफ्टवेयर की आवश्यकता निम्न प्रकार है-

  1. एक पेण्टियम MMX प्रॉसेसर सहित, 32 MB अथवा इससे अधिक RAM, न्यूनतम 2-1 GB संग्रहण क्षमता वाला कम्प्यूटर ।
  2. विण्डोज 95/98/2000 ऑपरेटिंग सिस्टम ।
  3. एक मॉडम जिसकी गति 33-6 kbps अथवा इससे अधिक हो ।
  4. फोन कनेक्शन जिसे मॉडम के साथ सम्बद्ध किया जा सके ।
  5. एक इण्टरनेट कनेक्शन ।
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मॉडम क्या होता है?

मॉडम वह उपकरण है जिसे कम्प्यूटर के साथ जोड़कर निकट या दूरवर्ती क्षेत्रों में सूचनाओं का आदान-प्रदान करने के लिए उपयोग किया जाता है। मॉडम, मॉड्युलेटर एवं डि-मॉड्युलेटर का संक्षिप्त नाम है।

मॉडम के प्रयोग के द्वारा ऐनालॉग सिग्नल को डिजिटल सिग्नल में, डिजिटल सिग्नल को ऐनालॉग सिग्नल में परिवर्तित करके सूचनाओं का संचार किया जाता है। सदैव अच्छे ब्रॉण्ड का मॉडम प्रयोग करना चाहिए।

एक तेज गति का मॉडम एक साथ कई सूचनाएँ एकत्रित कर सकता है। पहले मॉडम बहुत कम गति के आते थे। उनकी ट्रांसफर दर 300 बिट्स प्रति सेकण्ड तक होती थी।

आधुनिक मॉडम 56 किलो बाइट प्रति सेकण्ड गति तक के आ गये हैं। निम्नांकित चित्र 5.1 द्वारा मॉडम की कार्य-प्रणाली को समझा जा सकता है –

मॉडम के उपयोग से अनेक लाभ होते हैं। टेलीफोन लाइन के द्वारा डिजिटल आँकड़ों के लालॉग ट्रांसमिशन के अतिरिक्त अच्छे मॉडम आँकड़ों के संचार में शुद्धता सम्बन्धी परीक्षण भी कर सकते हैं। कई मॉडम तो एक से अधिक डेटा ट्रांसमिसन दर के बनाए जाते हैं।

उच्चस्तरीय माँडम में तो माइको प्रॉसेंसर भी लगा रहता है, जिसे विभिन्न परिस्थितियों में का करने के लिए प्रोग्राम किया जा सकता है। ऐसे मॉडम को स्मार्ट मॉडम कहते हैं।

मॉडम के प्रकार

मॉडम निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं-

  • आन्तरिक मॉडम (Internal Modem)
  • बाह्य मॉडम (External Modem)

(1) आन्तरिक मॉडम (Internal Modem) :- आतरिक मॉडम कम्प्यूटर के अन्य सेण्ट्रल प्रॉसेसिंग यूनिट (C.PU.) में लगाए जाते हैं। आन्तरिक मॉडम एक इलेक्ट्रॉनिक बोट के समान दिखायी देता है। इसको सेट करना तो सरल होता है, लेकिन प्रयोग करना अपेक्षाकृत कठिन। इसी कारण इसका प्रयोग कम किया जाता है।

(2) बाह्य मॉडम (External Modem):- बाह्य मॉडम छोटे डिब्बे के समान होते हैं, जिन्हें कॅम्प्यूटर के साथ रखा जाता है। बाह्य मॉडम में कुछ सूचक होते हैं, जो मॉडम के चालू (On) होने और उसकी गतिविधियों के विषय में संकेत देते रहते हैं।

मॉडम में छोटे-छोटे स्पीकर भी लगे होते हैं। इस प्रकार के मॉडम को सरलता से एक कम्प्यूटर से हटाकर दूसरे कम्प्यूटर पर भी लगाया जा सकता है।

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मॉडम को इन्स्टाल कैसे करे

मॉडम को किसी खाली कम्युनिकेशन पोर्ट से जोड़ा जाता है। यदि सिस्टम यूनिट से मॉडम को जोड़ दिया गया है और उसे इन्स्टाल नहीं किया गया है तो सिस्टम यूनिट ऑन करते 12 हो विण्डोज 95 तथा 98 उसे (Detect) कर लेते हैं और उसे इन्स्टाल करने की सलाह देते हैं।

वैसे किसी कम्युनिकेशन पोर्ट से जोड़कर मॉडम की इन्स्टालेशन स्वयं की जा सकती है ।इण्टरनेट एड्रेसिंग एवं इसके विभिन्न प्रकार

इण्टरनेट एड्रेसिंग’ एक ऐसा माध्यम है, जिसके द्वारा व्यक्तियों एवं इण्टरनेट के स्रोतों कोपहचाना और समझा जाता है।

प्रमुख ‘इण्टरनेट एड्रेसिंग’ निम्नलिखित हैं

  1. डोमेन नाम (Domain Name)
  2. (2) टी० सी० पी० / आई० पी० (TCP/IP)

(1) डोमेन नाम (Domain Name)

‘डोमेन नाम’ एक ऐसी विधि है, जिससे इण्टरनेट पर काम कर रहे व्यक्तियों को पहचानकर खोजा जाता है। यह इण्टरनेट से जुड़े प्रत्येक कम्प्यूटर का एक विशिष्ट एड्रेस होता है। एड्रेस की इस विधि को ‘डोमेन नेम सिस्टम’ (Domain Name System) कहते हैं।

प्रत्येक डोमेन नेम एड्रेस के कम-से-कम दो भाग होते हैं दायीं ओर तीन का, क्षेत्र का नाम होता है। यह नाम संगठन की पहचान होती है।

बायीं ओर पते का प्रयोग कर रही कम्पनी या संस्था का नाम होता है। डोमेन नाम के दोनों भागों को पीरियड्स (.) के द्वारा अलग किया जाता है, जिन्हें Dot कहते हैं। उदाहरण के लिए हैं Sageerkitech.com आदि ।

डोमेन नाम एवं क्षेत्र का प्रकार :- इण्टरनेट सोसाइटी द्वारा सभी प्रयोगकर्ताओं को आठ श्रेणियों में विभाजित किया गया। ये आठ श्रेणियाँ निम्नलिखित हैं

डोमेन नामक्षेत्र का प्रकार
.comइस वर्ग के अन्तर्गत व्यापारिक संगठनों को रखा गया है।
.govस वर्ग के अन्तर्गत अमेरिकी सरकार तथा उसके सरकारी संस्थान आते हैं
.eduइस वर्ग के अन्तर्गत शैक्षणिक संस्थानों को रखा गया है
.orgइस वर्ग के अन्तर्गत अव्यावसायिक संस्थानों को रखा गया है।
.milइस वर्ग के अन्तर्गत सैनिक संस्थानों को रखा गया है
.in, .au, .nzइस वर्ग के अन्तर्गत कुछ विशेष देशों को रखा गया है; जैसे—–in: भारत, au: ऑस्ट्रेलिया, nz : : न्यूजीलैंड ।
.intइस वर्ग के अन्तर्गत अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों एवं संस्थाओं को रखा गया है।
.netइस वर्ग के अन्तर्गत नेटवर्किंग संस्थाओं को रखा गया है।

(2) टी० सी० पी० / आई० पी० (TCP/IP)

इण्टरनेट पर सूचनाओं के आदान-प्रदान करने के लिए विभिन्न संस्थाओं द्वारा सुपरिभाषित नियम, प्रक्रियाएँ एवं सन्धियाँ होती हैं, जिन्हें ‘प्रोटोकॉल’ कहते हैं। वर्तमान में प्रचलित प्रोटोकॉल को टी० सी० पी० आई० पी० कहते हैं।

टी० सी० पी० का पूरा नाम ‘ट्रांसमिसन कंट्रोल प्रोटोकॉल’ (Transmission Control Protocol) है और आई० पी० का पूरा नाम ‘इण्टरनेट प्रोटोकॉल’ (Internet Protocol) है। यह एक निश्चित नेटवर्क पर; एक निश्चित मशीन का परिचायक होता है।

एक आई० पी० एड्रेस में चार भाग होते हैं, जो कि पीरियड्स (.) के द्वारा अलग-अलग किये जाते हैं। प्रत्येक भाग में 0 से 255 तक नम्बर होते हैं।

टी० सी० पी० आई० पी० एड्रेस की प्रमुख विशेषताएँ: आई० पी० एड्रेस की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  • किन्हीं भी दो कम्प्यूटर्स के आई० पी० एड्रेस समान नहीं होते हैं।
  • आई० पी० एड्रेस; विशिष्ट, विश्वस्तरीय एवं आदर्श होते हैं।
  • टी० सी० पी० आई० पी० का डिजाइन; किसी हार्डवेयर पर आधारित नहीं होता है।

टी० सी० पी० आई० पी० का डिजाइन; किसी हार्डवेयर पर आधारित नहीं होता है। टी० सी० पी० आई० पी० का प्रमुख उद्देश्य यह होता है कि वह नेटवर्क पर कार्य कर रहे सभी कम्प्यूटरों को ध्यान में रखते हुए, सूचनाओं को शीघ्रता से छोटे-छोटे रूट के द्वारा और रूट के बन्द होने पर भी प्रेषित करे।

रूट बन्द होने के अनेक कारण हो सकते हैं; जैसे-कम्प्यूटर बन्द हो, टेलीफोन खराब हो या टेलीफोन की लाइनों में मरम्मत का कार्य हो रहा हो।

इण्टरनेट से जुड़ने वाला प्रत्येक कम्प्यूटर; इन प्रोटोकॉल्स को समझता है और सूचनाओं के आदान-प्रदान में इनका उपयोग करता है।

टी० सी० पी० नेटवर्क पर सूचनाओं को तीव्र गति से स्थानान्तरित करने के लिए छोटे-छोटे अंकों में भेजा जाता है, जिनको ‘पैकेट’ कहते हैं। एक पैकेट की अधिकतम क्षमता 65.336 बाइट्स होती है।

आई० पी० एक डाक विभाग की तरह कार्य करता है। यह सूचनाओं के गन्तव्य स्थान पर पहुँचने तक सूचनाओं को एक फाइल में उसी क्रम में पुनः संगठित करके रखता है, जिस क्रम में उन्हें तोड़ा गया था तथा अन्त में उसे लक्ष्य-कम्प्यूटर पर पहुँचा देता है।

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भारत में Internet की सेवा

इण्टरनेट सेवा प्रदान करने वाली कम्पनियाँ हमें इण्टरनेट से जोड़ती है। यदि हम इण्टरनेट जुड़ना चाहते हैं तो हमें ऐसी ही किसी कम्पनी की सेवा लेनी पड़ेगी।

भारत में इण्टरनेट सेवाएं अगस्त 1995 से मुख्य रूप से विदेश संचार निगम लिमिटेड द्वारा उपलब्ध कराई जा रही हैं।इसके लिए आई-नेट नाम का एक सार्वजनिक नेटवर्क बनाया गया है।

इस नेटवर्क का संचालन दूर संचार तथा विदेश संचार निगम लिमिटेड द्वारा संयुक्त रूप से किया जा रहा है।

विदेश संचार निगम लिमिटेड दो प्रकार से इण्टरनेट की सुविधा उपलब्ध कराता है ।

  • शेल एकाउण्ट (Shell Account),
  • टी. सी. पी./आई. पी. एकाउण्ट (TCP/IP Account)

इण्टरनेट सेवा लेने का शुल्क इण्टरनेट से जुड़ने के समय के अनुसार होता है। इसे घण्टा में मापा जाता है। जितने समय आप इण्टरनेट पर जुड़े रहते रहते हैं, उतने समय तक आपकी टेलीफोन लाइन भी व्यस्त रहती है, जिसकी राशि इण्टरनेट शुल्क में सम्मिलित नहीं होती ।

विदेश संचार निगम लिमिटेड के अतिरिक्त महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड, मन्त्र ऑनलाइन, सत्यम् कम्प्यूटर्स तथा टाटा नोवा जैसी संस्थाएँ भारत के विभिन्न शहरों में इण्टरनेट सेवा उपलब्ध करा रही हैं।

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Internet से सूचनाएँ कैसे प्राप्त करें

प्रत्येक शहर में इण्टरनेट सेवा प्रदान करने का एक POP (Point of Presence) होता है। POP ऐसा स्थान होता है जहाँ पर उस क्षेत्र के उपभोक्ता उस कम्पनी का नेटवर्क ऐक्सेस करते हैं।

एक क्षेत्र में एक या अधिक इण्टरनेट सेवा प्रदान करने वाली कम्पनी हो सकती हैं, जिनके अपने-अपने नेटवर्क हो सकते हैं।

इन अलग-अलग कम्पनियों के POP एक-दूसरे से संचार लाइनों द्वारा जुड़े रहते हैं। दो बड़े नेटवर्क जिस स्थान पर एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं, उसे नेटवर्क ऐक्सेस पाइण्ट कहते हैं। ने

टवर्क ऐक्सेस पाइण्ट वह स्थान है, जहाँ पर अनेक नेटवर्क आपस में जुड़े रहते हैं।

इण्टरनेट में सूचनाओं को संग्रहित करने के लिए अलग-अलग वेबसाइट का प्रयोग किया। जाता है। इण्टरनेट पर ऐसी लाखों वेबसाइट उपलब्ध हैं, जिनमें किसी सूचना को ढूंढ़ना एक समय लगाने वाला कार्य है।

यदि किसी साइट का नाम मालूम हो, तो तुरन्त उस साइट तक पहुँचा जा सकता है। इसके लिए Internet Explorer के मैन्यू बार के ‘File’ को क्लिक कीजिए।

इसके पुलडाउन मैन्यू में Open पर क्लिक करने से Open का एक डायलॉग बॉक्स औ जाएगा। इस डायलॉग के Open के टैक्स्ट बॉक्स में वेबसाइट का नाम Type करके Ok बटन पर क्लिक कीजिए।

इससे कम्प्यूटर शीघ्र ही उस वेबसाइट तक पहुँचकर उसकी सूचनाएँ स्क्रीन पर प्रदर्शित कर देगा। यदि ये सूचनाएँ परिवर्तित होने वाली हो, तो नवीनतम सूचनाओं के लिए Refresh बटन को क्लिक करना चाहिए।

“किसी वेबसाइट को खोलने को दूसरी विधि के अन्तर्गत इण्टरनेट एक्स्प्लोरर को मुख्य विण्डो में Address के ड्रॉप डाउन लिस्ट बॉक्स को खोलकर उसमें से वेबसाइट का नाम चुनिए और उस पर माउस का प्वॉइण्टर ले जाकर क्लिक कर दीजिए अथवा वेबसाइट का पूरा नाम सीधे टाइप कर दीजिए।

अब एण्टर दबाइए। इससे बेबसाइट के खुलने की प्रक्रिया आरम्भ हो जायेगी।

उदाहरणार्थ, ‘टाइम्स ऑफ इण्डिया’ समाचार पत्र की वेबसाइट का ऐड्रेस (www.times. ofindia.com) टाइप करते हैं तो इससे कम्प्यूटर की स्क्रीन पर इस समाचार पत्र की फाइल • खुल जायेगी जिससे आप वर्तमान दिनांक का समाचार पढ़ सकते हैं ।

यदि वेबसाइट का नाम मालूम नहीं हो और आप किसी सूचना को लेना चाहते हो तो उस सूचना को खोजने के लिए ‘Search’ टूल बटन पर क्लिक कीजिए।

किसी साइट को खोलने और उससे सम्बन्धित पूरी सूचनाएँ प्राप्त करने में इण्टरनेट एक्सप्लोरर को पर्याप्त समय लगता है। सूचनाएँ धीरे-धीरे आती हैं, इसलिए धैर्य से सूचनाओं हैं आने की प्रतीक्षा करनी चाहिए। इसका पता ग्लोब के घूमने से चलता है।

यह विण्डों के दयों और के ऊपरी कोने पर इण्टरनेट के प्रतीक चिह्न के रूप में होता है। साइट से सम्बद्ध समस्त सूचनाओं के आ जाने पर ग्लोब का घूमना बन्द हो जाता है।

यदि आपकी सूचना पहले हो आ गयी है और आप आगे को सूचना नहीं लेना चाहते तो टूल बार में उपलब्ध Stop बटन पर क्लिक कर दीजिए।

Search Engine क्या है?

सर्च इंजन जिसे सूचना खोजी भी कहते हैं, एक ऐसी तकनीक है जिसके द्वारा किसी भी विषय से सम्बन्धित विश्वव्यापी सूचनाएँ सरलता एवं शीघ्रता से प्राप्त की जा सकती हैं। भारत सर्वप्रथम सर्च इंजन सन् 1994 में ‘याहू’ नाम से बना था।

इण्टरनेट पर वर्तमान समय में लगभग 100 से भी अधिक सर्व इंजन हैं; लेकिन एक भी सर्च इंजन ऐसा नहीं है जो सभी जानकारियाँ पूर्ण रूप से प्रदान कर सके।

ऐसा इसलिए है, क्योंकि सर्च इंजन एक प्रकार का प्रोग्राम होता है, जिसे समय-समय पर अपडेट किया जाना चाहिए।

सर्व इंजन को अपडेट करने में समय लगता है और इस बीच के समय की नई जानकारियों को तत्सम्बन्धित सर्च इंजन द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता। अतः कोई भी सर्व इंजन ऐसा नहीं है, जो इण्टरनेट पर उपलब्ध सभी जानकारियों को एक समय पर सुलभ करा 450 सके।

इण्टरनेट एक बहुत बड़ा एवं विस्तृत विश्वव्यापी जाल है। इसलिए सर्च इंजन भी | शक्तिशाली एवं तीव्र गति से काम करने वाले होने चाहिए।

इण्टरनेट का एक बहुत बड़ा भाग लगभग नियमित रूप से अपडेट किया जाता है क्योंकि सैकड़ों की संख्या में नई वेबसाइट्स प्रतिदिन इण्टरनेट पर उदित होती हैं। अतः इण्टरनेट को सर्च इंजन की सहायता के बिना प्रयोग नहीं किया जा सकता।

सर्च इंजन की सहायता से आप ऐसी-ऐसी जानकारियाँ एवं वेबसाइट को खोज सकते हैं, जिनके बारे में आपको स्वयं भी पता नहीं होता, कम्प्यूटर स्क्रीन पर सर्च इंजन की विण्डो प्रदर्शित होती है,

जिस विषय की जानकारी या वेबसाइट आपको खोलनी होती है, उससे सम्बन्धित वाक्य या शब्द उस सर्च विण्डो में टाइप कर दिया जाता है और उसके साथ दिये गये पुरा बटन को क्लिक करके सर्च इंजन को क्रियान्वित कर दिया जाता है।

सर्च इंजन इण्टरनेट के विशाल डेटा भण्डार गृह में उस शब्द या वाक्य को खोजता है। जिस भी वेबसाइट पर उससे सम्बन्धित जानकारी मिल जाती है, उस वेबसाइट को आपके कम्प्यूटर की स्क्रीन पर प्रदर्शित कर देता है और आप वांछित जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

कुछ प्रसिद्ध Search Engine के नाम

कुछ प्रसिद्ध Search Engine के नाम निम्न्लिखित है‌-

  1. www.yahoo.com
  2. www.google.com
  3. www.lyeos.com
  4. www.excite.com
  5. www.alvistadigital.com
  6. www.webcrawler.com
  7. www.hotbot.com

(1) www.yahoo.com:- सर्वप्रथम याह सर्च इंजन का उदय सन् 1994 में हुआ था । यह इण्टरनेट पर उपलब्ध सभी वेबसाइटों का संगठित रूप है, जो छोटे-छोटे भागों में विभाजित हैं। इन्हें अप-डेट करने के लिए कमाण्ड देने की आवश्यकता होती है। कुछ सर्च इंजन निश्चित समय के पश्चात् स्वयं अपडेट होते रहते हैं। याहू निःशुल्क ई-मेल की सुविधा भी प्रदान करता है।

(2) www.google.com:- यह भी एक प्रचलित सर्च इंजन हैं। यह अनेक विषयों से सम्बन्धित वेबसाइट वेबपेजों की सूची अति शीघ्र ही प्रदान करता है।

(3) www.lyeos.com:- इस सर्च इंजन में लगभग 66 million पृष्ठों की जानकारी उपलब्ध है। यह सर्च इंजन अनेक विषयों में जानकारियाँ उपलब्ध कराता है; जैसे—समाचार, साइट, रिव्यूज, ध्वनि, प्रतिरूप आदि ।

(4) www.excite.com:- इस सर्च इंजन में लगभग 50 million पृष्ठों को जानकारी उपलब्ध है।

(5) www.alvistadigital.com:- इस सर्च इंजन का उदय सन् 1995 में हुआ था। यह बहुत लोकप्रिय सर्च इंजन है, क्योंकि यह बहुत अधिक मात्रा में जानकारियाँ उपलब्ध कराता है।

(6) www.webcrawler.com:- यह एक शक्तिशाली सर्च इंजन है। इस पर कई विशेष वेबसाइट उपलब्ध हैं।

(7) www.hotbot.com:- इस सर्च इंजन के डेटाबेस में लगभग 54 million पृष्ठों की जानकारी संग्रहित है। यह चुने हुए शब्दों तथा वाक्य-खण्डों की सर्च के लिए उत्तम है, क्योंकि यह सर्चिंग के बहुत अधिक विकल्प प्रदान कराता है।

ई-मेल क्या है?

‘ई-मेल’ का पूरा नाम ‘इलेक्ट्रॉनिक मेल’: अर्थात् ‘इलेक्ट्रॉनिक डाक’ है। ई-मेल के द्वारा कोई भी व्यक्ति नेटवर्क से जुड़े किसी भी व्यक्ति को इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से सन्देश प्रेषित कर सकता है या उसका सन्देश प्राप्त कर सकता है।

साधारण डाक से सन्देशों के आदान-प्रदान में पर्याप्त समय लगता है तथा सन्देशों की गोपनीयता एवं सुरक्षा को भी खतरा होता है। कभी-कभी सन्देशों के समय पर न पहुँचने से अथवा खो जाने से उनकी उपयोगिता भी समाप्त हो जाती है।

लेकिन ई-मेल में ऐसा नहीं होता क्योंकि इस माध्यम में सर्वप्रथम सन्देशों अथवा सूचनाओं को, इलेक्ट्रॉनिक रूप से कम्प्यूटर पर तैयार किया जाता है।

इसके बाद उन्हें विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक संचार माध्यमों के स्थानान्तरित किया जाता है। इस प्रक्रिया के द्वारा किसी व्यक्ति के माध्यम से प्रेषित सन्देश, कुछ ही क्षणों में प्राप्तकर्त्ता तक पहुँच जाता है।

ई-मेल सिस्टम में कम्प्यूटर की स्मृति का एक भाग, ई-मेल के लिए आरक्षित किया जाता है। यह भाग; छोटे-छोटे उपभागों में विभाजित होता है, जो भिन्न-भिन्न सन्देशकर्त्ताओं के लिए निश्चित और आरक्षित होता है। इन्हें ‘मेल-बॉक्स’ कहा जाता है।

प्रत्येक प्रयोगकर्ता द्वारा प्रयुक्त किए जाने वाले मेल-बॉक्स का एक निश्चित एड्रेस होता है। सन्देश प्राप्तकर्ता किसी भी समय मेल-बॉक्स से सम्बन्धित मेल को या सन्देश को प्राप्त कर सकता है। भिन्न-भिन्न मेल-बॉक्स को किसी विशेष पासवर्ड द्वारा खोला या बन्द किया जा सकता है।

इस पासवर्ड की जानकारी केवल उपयोगकर्त्ता को ही होती है; अतः सन्देशों की गोपनीयता बनी रहती है। ई-मेल के माध्यम से एक ही सन्देश को अलग-अलग स्थानों पर पहुँचाया जा सकता है।

कम्प्यूटर द्वारा ई-मेल करने का व्ययः सभी स्थानों पर एक समान ही होता है, चाहे वह एक शहर में, एक देश में या विश्व में कहीं भी भेजा जा रहा हो।

इण्टरनेट पर ‘फ्री ई-मेल सर्विस) के लिए माइक्रोसॉफ्ट कम्पनी की ‘ई-मेल सर्विस’ hotmail.com अत्यधिक प्रचलित है ।

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Internet की फाइलें

इण्टरनेट में विभिन्न प्रकार की फाइलें संग्रहित होती हैं, जिनके भिन्न-भिन्न एक्सटेंशन होते हैं। इण्टरनेट की फाइलों के नाम एवं उनके एक्सटेंशन निम्न प्रकार हैं-

  • प्रोग्राम फाइलें : इनके एक्सटेंशन EXE एवं BAT होते हैं ।
  • टेक्स्ट फाइलें : इनके एक्सटेंशन EPS, TXT, DOC, PS, PDS, RIF आदि होते हैं।
  • इमेज फाइलें : इनके एक्सटेंशन ACE, GIF, BMP, PCD, PSD, TGA, FIG, (TIF. JPG आदि होते हैं।
  • कम्प्रेस्ड फाइलें : इनके एक्सटेंशन ARJ, ZIP GZ, Z. ZOO, LZH आदि होते हैं।
  • ऑडियो फाइलें : इनके एक्सटेंशन MID, WAV एवं VOC होते हैं।
  • वीडियो फाइलें : इनके एक्सटेंशन AVI, MOV एवं DL होते हैं।
  • (7) ई-मेल फाइलें : इनके एक्सटेंशन HQX, VVE, MME एवं B64 होते हैं।
  • एच- टी. एम. एल डॉक्यूमेण्ट फाइलें : इनके एक्सटेंशन HTM एवं HTML होते हैं।

इण्टरनेट से सम्बन्धित कुछ महत्त्वपूर्ण शब्द

इण्टरनेट से सम्बन्धित कुछ महत्त्वपूर्ण शब्द एवं उनकी परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं—

(1) डोमेन (Domain):- डोमेन’ इण्टरनेट एड्रेस के उप-विभाजन को कहते हैं। दूसरे शब्दों में, इण्टरनेट एड्रेस के दायीं ओर का अन्तिम शब्द ‘डोमेन’ कहलाता है; जैसे-edu शिक्षा के लिए।

(2) डेटा ट्रैफिक (Data Traffic):- डेटा ट्रैफिक का अर्थ है- नेटवर्क पर सक्रिय जानकारी; अर्थात् किसी नेटवर्क में एक निश्चित समय में कितने सूचना-पैकेट क्रियाशील हैं। सूचना-पैकेट की गति: उनकी संख्या पर निर्भर करती है।

(3) टाइम शेयरिंग सिस्टम (Time Sharing System):- यह एक ऐसा ऑपरेटिंग सिस्टम होता है, जिसमें एक साथ कई उपयोगकर्त्ता कम्प्यूटर का उपयोग कर सकते हैं। इसमें प्रत्येक उपयोग करने वाले को क्रम से सी. पी. यू. का कुछ समय दिया जाता है। लेकिन सभी उपयोगकर्त्ताओं को यह समझ में आता है कि उनका कार्य लगातार हो रहा है।

(4) बस (Bus):- कम्प्यूटर अथवा कम्प्यूटर के विभिन्न भाग आपस में तार अथवा सर्किट के द्वारा जुड़े रहते हैं। इन्हीं के माध्यम से आँकड़े कम्प्यूटर के एक भाग से दूसरे भाग में भेजे जाते हैं। इन्हीं तारों अथवा चैनलों को बस कहा जाता है।

(5) आई • एस० डी० एन (ISDN):- आई- एस. डी. एन. ‘Integrated Services Digital Network’ का संक्षिप्त रूप है। यह एक प्रकार का सम्पर्क माध्यम है, जिसका उपयोग साधारण टेलीफोन लाइनों के स्थान पर किया जाता है। इससे इण्टरनेट के उपयोग की गति बढ़ जाती है।

6) लॉग-इन (Log in):- प्रयोगकर्त्ता द्वारा किसी नेटवर्क से सम्बन्ध स्थापित करने कीक्रिया को ‘लॉग-इन’ करना कहा जाता है। लॉग-इन की विपरीत क्रिया ‘लॉग-ऑफ’ है। यह प्रयोगकर्त्ता का अपने नेटवर्क से डेटा कनेक्शन का समापन है।

ण्टरफेस (Interface):-

(7) इण्टरफेस (Interface):- दो भिन्न-भिन्न मशीनों अथवा साधनों के मध्य सम्बन्ध बनाने की तकनीक अथवा सुविधा को ‘इण्टरफेस’ कहा जाता है; जैसे-प्रिण्टर इण्टरफेस। यह किसी प्रिण्टर का सम्बन्ध कम्प्यूटर से जोड़ता है।

(8) एच. टी. एम. एल. (HTML):- एच. टी. एम. एल. ‘हाइपर टेक्स्ट मार्कअप लँग्वेज’ (Hyper Text Markup Language) का लघुरूप है। हाइपर टेक्स्ट युक्त वेव पृष्ठ बनाने के लिए इसी विशेष भाषा का प्रयोग किया जाता है।

एच टी. एम. एल. में त्रिआयामी चित्रों अथवा टेक्स्ट को नहीं बनाया जा सकता। चित्रों अथवा टेक्स्ट को त्रि-आयामी बनाने के लिए वी० आर. एम. एल. (Virtual Reality Modelling Language) का प्रयोग किया जाता है। इन भाषाओं में प्रोग्रामिंग तकनीक कम होती है।

(9) वायस (WAIS):- वायस वाइड एरिया इन्फॉर्मेशन सर्वर (Wide Area Information Server) का लघु रूप है। यह एक ऐसा इण्टरनेट सॉफ्टवेयर है, जो विभिन्न डेटाबेस से सूचनाओं को प्राप्त करने के लिए बनाया गया है तथा सम्पूर्ण इण्टरनेट पर वितरित किया गया है। यह प्रोग्राम सभी ऑपरेटिंग सिस्टम के लिए उपलब्ध है।

(10) होमपेज (Homepage):- किसी वेबसाइट का प्रथम पृष्ठ ‘होमपेज’ कहलाता है। नियमानुसार होमपेज पूरे वेबसाइट की सूची रखने की शर्त को पूरा करता है।

(11) वेब-साइट (Web Site):- विभिन्न वेब पृष्ठों के समूह को ‘वेबसाइट’ कहते हैं। चब साइट किसी संस्था अथवा कम्पनी की होती है। वेब पृष्ठों में पाठ्यांशों, चित्रों, आँकड़ों आदि की सहायता से किसी अन्य डॉक्युमेण्ट्स या उसी डॉक्यूमेण्ट के किसी अन्य टेक्स्ट अथवा ग्राफिक्स से सम्बन्ध जोड़े जाते हैं। वे शब्द अथवा वाक्यांश, जिनके द्वारा हाइपर लिंक बनाए जाते हैं, ‘हाइपर टेक्स्ट’ (Hyper Text) कहे जाते हैं ।

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इण्टरनेट क्या है ?

इण्टरनेट लाखों-करोड़ों कम्प्यूटरों का एक ऐसा विशाल समूह है, जिसके सभी कम्प्यूटर आपस में जुड़कर ‘कम्प्यूटर नेटवर्क’ का निर्माण करते हैं। इस नेटवर्क सभी कम्प्यूटर आपस में सम्पर्क स्थापित कर सकते हैं और डेटा का आदान-प्रदान भी कर सकते हैं।

इंटरनेट का क्या मतलब है?

इंटरनेट एक विश्व स्तर पर जुड़ा नेटवर्क सिस्टम है जो TCP/IP प्रोटोकॉल के उपयोग से एक कंप्यूटर से दूसरे कम्प्युटर के बीच विभिन्न प्रकार के मीडिया के माध्यम से सूचनाएँ, जनकारियाँ या डाटा (Data) का संचार या आदान-प्रदान के लिए उपयोग किया जाता है। “ इस नेटवर्क में कंप्यूटर सर्वर भी शामिल होते हैं।

इण्टरनेट का विकास ?

इण्टरनेट का विकास विभिन्न अकादिम संस्थानों, सरकारी एवं सूचना प्रौद्योगिक कम्पनियों के समन्वित प्रयास के फलस्वरूप हुआ। सन् 1969 में अमेरिकी रक्षा विभाग ने आपात स्थिति में, जबकि सम्पर्क के अन्य माध्यम फेल हो चुके थे, अपनी विभिन्न एजेन्सियों तथा सेना के विभिन्न अंगों के मध्य सामंजस्य स्थापित करने के लिए इण्टरनेट की स्थापना की। सन् 1995 में माइक्रोसॉफ्ट कॉरपोरेशन के ब्राउजर प्रोग्राम के आने से प्रयोगकर्ताओं के लिए इण्टरनेट का प्रयोग बहुत सरल हो गया ।

इण्टरनेट के लाभ ?

इण्टरनेट के माध्यम से ई-मेल भेजा और प्राप्त किया जा सकता है, गेम खेल सकते हैं, वस्तुएँ क्रय की जा सकती हैं, विज्ञापन दिये जा सकते हैं, विभिन प्रतियोगिताओं में भाग लिया जा सकता है, व्यापार किया जा सकता है आदि ।

इण्टरनेट के उपयोग ?

इण्टरनेट के उपयोग से निम्नलिखित सुविधाएँ प्राप्त की जा
सकती है :-1 ई-मेल, 2. वर्ल्ड वाइड वेब 3. फाइल ट्रान्सफर प्रोटोकॉल,
टेलनेट, 5. आर्ची, 6. इलेक्ट्रॉनिक बुलेटिन बोर्ड, 7. गोफर, 8. ई-कॉमर्स आदि ।

मॉडम ?

वह उपकरण है, जिसे कम्प्यूटर के साथ जोड़कर निकट या दूरवर्ती क्षेत्रों में सूचनाओं का आदान प्रदान करने के लिए उपयोग किया जाता है। माँडम दो प्रकार के होते हैं । जैसे – 1. आन्तरिक मॉडम, 2. बाह्य माँडम ।

मॉडम कैसे इंस्टाल करे ?

किसी कम्युनिकेशन पोर्ट से जोड़कर मॉडम की इन्स्टालेशन स्वयं की जा सकती है।

इण्टरनेट एड्रेसिंग एवं इसके विभिन्न प्रकार ?

इण्टरनेट एड्रेसिंग एक ऐसा माध्यम जिसके द्वारा व्यक्तियों एवं इण्टरनेट के स्रोतों को पहचाना और समझा जाता है। प्रमुख इण्टरनेट एड्रेसिंग निम्नलिखित हैं-1. डोमेन नाम, 2. टी. सी. पी./आई. पी. ।

भारत में इण्टरनेट सेवा ?

भारत में इण्टरनेट सेवाएँ अगस्त 1995 से विदेश संचार
निगम द्वारा उपलब्ध करायी जा रही है।

इण्टरनेट से सूचनाएं प्राप्त कैसे करे ?

प्रत्येक शहर में इण्टरनेट सेवा प्रदान करने का एक POP होता है | POP ऐसा स्थान होता है, जहाँ पर उम्र क्षेत्र के उपभोक्ता उस कम्पनी का नेटवर्क ऐक्सेस करते हैं और सम्बन्धित वेबसाइट खोलकर सूचनाएँ प्राप्त करते हैं

सर्च इंजन क्या है ?

सर्च इंजन एक ऐसी तकनीक है जिसके द्वारा किसी भी विषय से सम्बन्धित विश्वव्यापी सूचनाएँ सालता एवं शीघ्रता से प्राप्त की जा सकती है।

कुछ प्रसिद्ध सर्च इंजन के नाम प्रमुख सर्व इंजन निम्नलिखित है ?

1. www.yahoo.com.
2. www.google.com
3. www.lycos.com
4.www.excite.com
5. www.alvistadigital.com
6. www.weburgwier.com
7. www.hotbot.com

ई -मेल क्या होता है ?

ई -मेल का पूरा नाम ‘इलेक्ट्रॉनिक मेल’ अर्थात् ‘इलेक्ट्रॉनिक डाक’ है। ईमेल के द्वारा किसी भी व्यक्ति के माध्यम से सन्देश कुछ ही क्षणों में प्राप्तकर्ता क
पहुँच जाता है।

इण्टरनेट की फाइलो के नाम ?

इण्टरनेट की फाइलें निम्नालिखत हैं-
(1) प्रोग्राम फाइलें
(2) टेक्स्ट फाइलें
(3) इमेज फाइलें
(4) कम्प्रेस्ड फाइलें
(5) आडियो फाइले
(6) वीडियो फाइलें
(7) ई-मेल फाइलें
(8) एच० टी० एम० एल० डॉक्यूमेण्ट फाइलें इण्टरनेट क्या है ।

इण्टरनेट से सम्बन्धित कुछ महत्त्वपूर्ण शब्द के नाम ?

डोमेन, डेटा ट्रैफिक, टाइम शेयरिंग सिस्टम, बस, आई० एस० डी० एन०, लॉग इन, इण्टरफेस, एच० टी० एम० एल०, वायस, होमपेज, वेब-साइट।

Internet क्या होता है और कैसे काम करता है?

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